INDIAN TRADITION
भारतीय संस्कृति की बात हो तो उसमें कर्मकांड की चर्चा स्वतः ही होती है। अभी पितृपक्ष है।इसमें अपने पितरों के लिए तर्पण किया जाता है,साथ ही खीर बना कर कौओं को खिलाया जाता है।
कई लोग कर्मकांडों की जमकर आलोचना करते हैं।इसे करने वालों को गँवार और पता नहीं क्या क्या समझते हैं। पहले उनलोगों को हमारे पुरखों द्वारा बनाए गए रीति रिवाजों के तह में जाकर चीजों को समझना चाहिए फिर कुछ बोलना चाहिए।
कौओं का हमारे जीवन से बहुत गहरा संबंध है। पीपल और वट् वृक्ष ये दो ऐसे पेड़ हैं जिनकी महत्ता हमारे जीवन में क्या है ,बताने की आवश्यकता नहीं है।इन दोनों पेड़ों के बीज को पहले कौए खाते हैं।पेट में उन्हें दीक्षित करके जब बाहर निकालते है ,तब उस बीज से इन दोनों पेड़ों की उत्पत्ति होती है। पीपल और बट् वृक्ष को ब्राह्मण भी इसीलिए कहा जाता है क्योंकि ये द्विज हैं ।
इसलिए जरूरत है अपने पुरखों द्वारा बनाए गए नियमों को समझने की, न कि आधुनिकता के होड़ में वगैर कुछ सोचे समझे अनर्गल विलाप करने की ।
ये सब हैं तो हम हैं।
कई लोग कर्मकांडों की जमकर आलोचना करते हैं।इसे करने वालों को गँवार और पता नहीं क्या क्या समझते हैं। पहले उनलोगों को हमारे पुरखों द्वारा बनाए गए रीति रिवाजों के तह में जाकर चीजों को समझना चाहिए फिर कुछ बोलना चाहिए।
कौओं का हमारे जीवन से बहुत गहरा संबंध है। पीपल और वट् वृक्ष ये दो ऐसे पेड़ हैं जिनकी महत्ता हमारे जीवन में क्या है ,बताने की आवश्यकता नहीं है।इन दोनों पेड़ों के बीज को पहले कौए खाते हैं।पेट में उन्हें दीक्षित करके जब बाहर निकालते है ,तब उस बीज से इन दोनों पेड़ों की उत्पत्ति होती है। पीपल और बट् वृक्ष को ब्राह्मण भी इसीलिए कहा जाता है क्योंकि ये द्विज हैं ।
इसलिए जरूरत है अपने पुरखों द्वारा बनाए गए नियमों को समझने की, न कि आधुनिकता के होड़ में वगैर कुछ सोचे समझे अनर्गल विलाप करने की ।
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