RAMCHARITMANAS AND ASTROLOGY

रामचरितमानस के माध्यम से ज्योतिषशास्त्र को समझने का एक और प्रयास ..
राम जी के राजतिलक की चर्चा सुनकर मंथरा कैकेयी के पास जाकर उन्हें अपने प्रभाव में लेती है।मंथरा के लिए तुलसीदास जी लिखते हैं "अवध साढ़ेसाती तब बोली" ।मंथरा त्रिवक्रा है अर्थात् तीन टेढ़ापन मंथरा के अंदर है। और अगर शनि की ढ़ाई ढ़ाई बरस को तीन बार मिलाएँ तो तीनों मिलाकर साढ़ेसाती हो जाता है ।कैकेयी मंथरा के प्रभाव में आती है और मंथरा की प्रशंसा करती है " बकिही सराहइ मानि मराली "
कैकेयी जैसी बुद्धिमती स्त्री भी दासी के प्रभाव में आ गई।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार -" बुध ग्रह जिस ग्रह के प्रभाव में होता है वैसा फल देता है।"
यहाँ कैकेयी (बुध ),और मंथरा ( शनि ) । पर कैसा शनि ? साढ़ेसाती कह के कहीं यह संकेत तो नहीं कि जन्म समय में यदि चंद्र से एक घर आगे या पीछे बुध जब शनि के साथ हो अथवा चंद्र के साथ ही बुध और शनि हो तो ऐसा बुध घातक परिणाम देता है।

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