RAMCHARITMANAS
रामचरितमानस से कुछ सूत्र ...
1 - दो शब्द ..श्रद्धा और विश्वास।
श्रत माने सत्य और धा मतलब धारण करना अर्थात् धारण करने का नाम श्रद्धा है।
विगत श्वास हो जाना विश्वास है अर्थात् हटाने से भी नहीं हटना,ऐसी निष्ठा अंत:करण में हो जाना विश्वास है ।
श्रद्धा श्रद्धेय प्रधान होती है और विश्वास श्रद्धालु प्रधान। सामने वाले के अंदर सद्गुण देखकर हमारे हृदय में श्रद्धा का उदय होता है और जब यह श्रद्धा पक्की हो जाती है तब विश्वास बन जाती है।विश्वास बन जाने का मतलब निष्ठा का आ जाना । परोक्ष में श्रद्धा होती है और अपरोक्ष में विश्वास होता है। विश्वास अपने अंत:करण का गुण है। श्रद्धा और विश्वास दोनों रहते तो हृदय में ही हैं पर एक में सहारा सामने वाले का ज्यादा होता है और दूसरे में सहारे की जरूरत नहीं होती।
2 -रामचरितमानस से कुछ सूत्र ..
" मूकं करोति वाचाल .."
इन शब्दों का अगर सीधा सीधा अर्थ करें तो यह समझ में आता है कि भगवान की कृपा यदि हो जाए तो मूक ( गूँगा) भी वाचाल ( बोलना) हो जाए अर्थात् गूँगा भी बोलने लगे। पर वाचाल का मतलब बहुत बोलना होता है मानों दिमाग में इतना फितुर आ जाए कि हम बोलते ही जाएं,बोलते ही जाएं बगैर सोचे समझे और यह एक प्रकार का दोष है।तो भगवान की कृपा से ऐसा तो नहीं हो सकता।
संस्कृत में वाचाल अर्थात् वाचा अलम् अर्थात् वाणी का आभूषण।
" मूकं वाचा अलम् करोति " अर्थात् जिनकी कृपा से गूँगा भी वाणी से अलंकृत हो जाता है।गूँगे को भगवान वाणी का आभूषण पहना देते हैं ।
इसलिए ,शब्दों और वाक्यों की व्याख्या करने से पहले जरूरी है कि हम उसमें निहित सही अर्थों को समझ सकें। ऐसा नहीं करने पर हम अर्थ का अनर्थ ही करेंगे।जैसा कि हम " ढोल ,गँवार ,शूद्र,पशु ,नारी । सबहिं तारन के अधिकारी ", को लेकर करते आए हैं।
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