रामचरितमानस से ज्योतिषशास्त्र को समझने का एक और प्रयास.....
" कनक कोट विचित्र ....
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारू पुर बहु विधि बना
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अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार
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अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार
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कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हार प्रिय दास "
कोट चक्र का वर्णन और चंद्र नक्षत्र से प्रवेश की चर्चा।
कोट चक्र पर काम करते हुए हमारे मन में यह बात हमेशा आती रही कि प्रवेश के लिए चंद्रमा का ही नक्षत्र क्यों ? राशियों के स्वामी और राशियों से ही क्यों नही ?
अग्नि पुराण में प्रवेश के लिए सूर्य के नक्षत्र की चर्चा है फिर अब चंद्र का नक्षत्र क्यों ? जवाब मिला रामचरितमानस से।
हनुमान जी लंका में प्रवेश करने से पहले सोच रहे हैं कि अगर सशरीर प्रवेश करता हूँ तो पहचान लिया जाऊंगा।इसलिए अति लघु रूप,अणिमा सिद्धि ( नक्षत्र ) बनाया । अब यह नक्षत्र,चंद्र नक्षत्र ही है ये कैसे जाने ? इसे भी यह कहकर बता दिया कि प्रभु आपका जो ये सेवक है यह ससि ( चंद्रमा ) है ।
कोट चक्र को समझने में आइंस्टीन के theory of relativity ( यह theory पूरा का पूरा वही है जिसकी चर्चा विष्णु पुराण के काल निर्णय में की गई है ),ने भी बहुत मदद की।
रामचरितमानस,अग्नि पुराण,विष्णु पुराण,theory of relativity से हमें अलग अलग प्रकार की घटनाओं को देखने के लिए अलग अलग प्रवेश द्वार से प्रवेश करने की दिशा मिली ।रामचरितमानस जहाँ निसि समय ( उत्तर दिशा) से प्रवेश को बताता है वहीं अग्नि पुराण पूर्व दिशा से प्रवेश को बताता है।
परिणाम - सुखद और उत्साहवर्धक
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