ज्योतिषशास्त्र
उपनिषद्
उप- close
नि - vaccum
षद्- sit
अर्थात् ,बाहरी उपद्रव वाले बिंदूओं को बंद करके ,भीतर से खाली होकर बैठ जाना।
इसके बाद ही हम सही मायनों में सृजनशील हो सकते हैं ..
निर्माण कर सकते हैं ..
जरूरत है एक एक शब्दों के सही अर्थ तक जाने का ..
एक शब्द
बाजश्रवा
बाज शब्द के कई मायने
बाज..पक्षी
बाज..बोलना
और बाज का मतलब अनाज भी ।
श्रव - दान देने से दानदाता को जो कीर्ति मिलती है उसे श्रव कहते हैं ।
इसलिए यहां बाज का मतलब होगा अनाज ।
ज्योतिषशास्त्र के रहस्यों को उजागर करने में उपनिषद का मार्गदर्शन ..
ज्योतिषशास्त्र के सही स्वरुप से लोगों का साक्षात्कार कराना है तो हमें गहराइ में गोता लगाना होगा । एक एक पहलू के विभिन्न आयामों से मिलना होगा ।
एक छोटा सा उदाहरण..
ज्योतिष में सूर्य और चन्द्र के अलावे जब दो ग्रहों के बीच नजदीकी बढती है तो उसे ग्रहों का ग्रह युद्ध में जाना कहा जाता है ,(जब दोनों ग्रहों के बीच की नजदीकी 1* रहे )।ज्योतिषशास्त्र के पुस्तकों ने ग्रह युद्ध के बारे में इससे आगे कोई चर्चा नहीं की है ।
जरूरत है इसकी गूढ़ता को समझने का ..
अद्भुत है यह पाँच प्रकार की नजदीकी ..
इसी प्रकार से तमाम ऐसी बाते हैं जिन्हे समझने हेतु
जरुरत है
उपनिषद् होने का..
चरित्र निर्माण का ..
ईमानदारी का..
जब हम खुद के स्वरूप से मिल लेंगे
तभी हम सही मायनों में सृजनशील हो सकेंगे
निर्माण कर सकेंगे
और
ज्योतिषशास्त्र के रहस्यों को उजागर कर पाएंगे ..
हम वृष केतु बने..
काल केतु नही ..
तभी हम सही मायनों में विश्वकर्मा पूजा करने योग्य हो पाएंगे ..
निर्माण कर पाएंगे ..
उप- close
नि - vaccum
षद्- sit
अर्थात् ,बाहरी उपद्रव वाले बिंदूओं को बंद करके ,भीतर से खाली होकर बैठ जाना।
इसके बाद ही हम सही मायनों में सृजनशील हो सकते हैं ..
निर्माण कर सकते हैं ..
जरूरत है एक एक शब्दों के सही अर्थ तक जाने का ..
एक शब्द
बाजश्रवा
बाज शब्द के कई मायने
बाज..पक्षी
बाज..बोलना
और बाज का मतलब अनाज भी ।
श्रव - दान देने से दानदाता को जो कीर्ति मिलती है उसे श्रव कहते हैं ।
इसलिए यहां बाज का मतलब होगा अनाज ।
ज्योतिषशास्त्र के रहस्यों को उजागर करने में उपनिषद का मार्गदर्शन ..
ज्योतिषशास्त्र के सही स्वरुप से लोगों का साक्षात्कार कराना है तो हमें गहराइ में गोता लगाना होगा । एक एक पहलू के विभिन्न आयामों से मिलना होगा ।
एक छोटा सा उदाहरण..
ज्योतिष में सूर्य और चन्द्र के अलावे जब दो ग्रहों के बीच नजदीकी बढती है तो उसे ग्रहों का ग्रह युद्ध में जाना कहा जाता है ,(जब दोनों ग्रहों के बीच की नजदीकी 1* रहे )।ज्योतिषशास्त्र के पुस्तकों ने ग्रह युद्ध के बारे में इससे आगे कोई चर्चा नहीं की है ।
जरूरत है इसकी गूढ़ता को समझने का ..
अद्भुत है यह पाँच प्रकार की नजदीकी ..
इसी प्रकार से तमाम ऐसी बाते हैं जिन्हे समझने हेतु
जरुरत है
उपनिषद् होने का..
चरित्र निर्माण का ..
ईमानदारी का..
जब हम खुद के स्वरूप से मिल लेंगे
तभी हम सही मायनों में सृजनशील हो सकेंगे
निर्माण कर सकेंगे
और
ज्योतिषशास्त्र के रहस्यों को उजागर कर पाएंगे ..
हम वृष केतु बने..
काल केतु नही ..
तभी हम सही मायनों में विश्वकर्मा पूजा करने योग्य हो पाएंगे ..
निर्माण कर पाएंगे ..
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