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Showing posts from March, 2017

SIMPLE ASTROLOGY

2 फरवरी को ग्रहों ने , भारत की बदलती दशा के साथ ,जो संकेत दिए थे घटनाएं वैसी घटीं। 26 अप्रैल से भारत की दशा ..Moon / Rahu / Jupiter देश के स्वास्थ्य के लिए जिस प्रतिकूलता का संकेत ग्रहों ने दिया है वह अभी भी जारी खासकर 24 अप्रैल दोपहर ढ़ाई बजे से 29 अप्रैल दिन के एक बजे के बीच । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की कुंडली से इस साल अन्य कई बातों के अलावा खराब फसल और erratic बारिश का संकेत है उसी की भूमिका तैयार करने वाला यह समय । मौसम में काफी उथल पुथल। वैश्विक स्तर पर इस समय एक ओर सूर्य/ मंगल/बुध/ बृहष्पति/ शुक्र/ केतु का गुप्त गठजोड़ और दूसरी तरफ चंद्र / शनि / राहु का गठजोड़ जहाँ एक तरफ भूकंप की भूमिका बना रहे हैं वहीं दूसरी तरफ किसी शीर्ष के सत्ताधारी के scandal में जाने का भी समर्थन कर रहे हैं । सूर्य का मंगल और केतु के साथ साथ शुक्र के साथ संधि, आगजनी की ओर भी संकेत मिलता है ।

ASTROLOGY AND SCIENCE

Young double slit experiment ..electron अपने past को देखकर future action ,decide कर लेता है । वैज्ञानिक लोग electrons के इस actionको समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसा व्यवहार कैसे ? अब इन्हें कौन बताए कि इसका जवाब तो ज्योतिषशास्त्र में है। Albert Einstein की theory of relativity मे time & speed का संबंध पढ़ते हुए ऐसा महसूस हो रहा है कि इन्हें ज्योतिषशास्त्र की समझ है और ये ज्योतिषशास्त्र की भाषा में बात कर रहे हैं । इसकी चर्चा विष्णु पुराण में काल निर्णय खंड में की गयी है।

RAMCHARAITMANAS AND ASTROLOGY

रामचरितमानस और ज्योतिष .. अलंकार,आचार्य और यहाँ तक की कभी कभी research की क्लास में भी ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि एक ही ग्रह , अलग अलग भावों के स्वामित्व के साथ, कैसा व्यवहार करते हैं ? उत्तर रामचरितमानस में " ग्रह भेषज जल पावन पट पाइ कुजोग सुजोग " अर्थात् जल को कड़वी चीज में मिला दो तो कड़वा बन जाए,जल को मीठे में मिला दो तो मीठा बन जाए। पवन दुर्गंध में जाए तो दुर्गंध और पवन सुगंध में जाए तो सुगंध। कितनी सरलता से इस गूढ़ता को उजागर किया है।

RAMCHARITMANAS AND ASTROLOGY

रामचरितमानस और ज्योतिष .. धूम की चर्चा .. " धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजुमसि सोई ।। " धुँआ जब दीवार पर लगता है कालिख बनता है लेकिन इसी कालिख को स्याही बना लेते हैं तो उसी कालिख से वेद-पुराण लिखे जाते हैं। धूम का जिक्र होते ही अशुभ फलों की चर्चा की जाती है पर रामचरितमानस में धूम के शुभ और अशुभ दोनों फलों का वर्णन ।

RAMCHARITMANAS

रामचरितमानस से कुछ सूत्र ... 1 - दो शब्द ..श्रद्धा और विश्वास। श्रत माने सत्य और धा मतलब धारण करना अर्थात् धारण करने का नाम श्रद्धा है। विगत श्वास हो जाना विश्वास है अर्थात् हटाने से भी नहीं हटना,ऐसी निष्ठा अंत:करण में हो जाना विश्वास है । श्रद्धा श्रद्धेय प्रधान होती है और विश्वास श्रद्धालु प्रधान। सामने वाले के अंदर सद्गुण देखकर हमारे हृदय में श्रद्धा का उदय होता है और जब यह श्रद्धा पक्की हो जाती है तब विश्वास बन जाती है।विश्वास बन जाने का मतलब निष्ठा का आ जाना । परोक्ष में श्रद्धा होती है और अपरोक्ष में विश्वास होता है। विश्वास अपने अंत:करण का गुण है। श्रद्धा और विश्वास दोनों रहते तो हृदय में ही हैं पर एक में सहारा सामने वाले का ज्यादा होता है और दूसरे में सहारे की जरूरत नहीं होती। 2 -रामचरितमानस से कुछ सूत्र .. " मूकं करोति वाचाल .." इन शब्दों का अगर सीधा सीधा अर्थ करें तो यह समझ में आता है कि भगवान की कृपा यदि हो जाए तो मूक ( गूँगा) भी वाचाल ( बोलना) हो जाए अर्थात् गूँगा भी बोलने लगे। पर वाचाल का मतलब बहुत बोलना होता है मानों दिमाग में इतना फितुर आ जा

RAMCHARITMANAS AND ASTROLOGY

रामचरितमानस के माध्यम से ज्योतिषशास्त्र को समझने का एक और प्रयास ... प्रख्यात ज्योतिषशास्त्री वराहमिहिर ने कहा " कुजेन्दुहेतु प्रतिमासार्थवम् " इसे ही अमेरिकी Cecil's Book Of Medicine ने physiology of mensturation में कहा " infradion rhythm,include the gravitational influence of the moon ,which gives rise to the menstrual cycle " इन दोनों के इस कथन की पुष्टि रामचरितमानस से .. " सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा । पुत्रकाम शुभ जग्य करावा ।। भगति सहित मुनि आहुति दिन्हें । प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें ।। महाराज दशरथ पुत्र प्राप्ति की मनोकामना लेकर गुरु बसिष्ठ के पास जब जाते हैं तो बसिष्ठ रिषि खुद भी पुत्र कामेष्टि जग्य करा सकते थे परन्तु उन्होंने सृंगी रिषि को बुलाया। चाँद के दोनों सिरों को सृंग भी कहा जाता है अर्थात् सृंगी से यहाँ तात्पर्य चंद्र से है और कैसा चंद्र ? सृंग वाला अर्थात् पूर्णिमा या अमावस्या का नहीं।मतलब ऐसा चंद्र जो न तो सूर्य से दृष्ट हो और न ही सूर्य के साथ हो । अगिनि - मंगल , अर्थात् चंद्र,मंगल का संबंध। अर्थात् हम कह सकते हैं कि पूर्णि

RAMCHARITMANAS

रामचरितमानस द्वारा ज्योतिषशास्त्र को समझने का एक और प्रयास - हनुमान जी के लिए लिखा है " वायोरग्नि " अर्थात् वायु का पुत्र अग्नि। आगे लिखा है " प्राकाम्यसिद्धि " अर्थात् इस अग्नि का रूप कैसा ? उनके संकल्प के अनुसार ही अग्नि काम करती है। संकल्प के अनुसार अर्थात् जिसे चाहें जला डालें और जिसे चाहें न जलाएँ। " जरा नगरू निमिष एक माही। एक विभीषण कर ग्रह नाही ।" निशाचरों समेत पूरी लंका को एक पल में जला डाला सिर्फ विभीषण का घर छोड़ दिया। निशाचर ( राहु ) , सिंहिका का बेटा इसे सैंहिकेय भी कहते हैं। हनुमान जी ( मंगल ) सोने की लंका ( सिंह राशि ) 1 - क्या हम कह सकते हैं कि सिंह राशि में,मंगल,राहु की युति हो तो अग्नि भय । 2- विभीषण ,शास्त्र का ज्ञाता ( बृहष्पति) क्या हम कह सकते हैं कि सिंह राशि में मंगल और बृहष्पति का साथ हो तो बचाव हो या सिंह राशि में मंगल राहु के साथ पर बृहष्पति की दृष्टि हो तो बचाव हो ..

RAMCHARITMANAS

रामचरितमानस के आधार पर ज्योतिषशास्त्र को समझने का एक और प्रयास ... " पयोधि रमा सी " क्षीरसागर और लक्ष्मी जी की चर्चा ... क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग पर आराम करते हुए और लक्ष्मी जी उनके चरणों में। अब लक्ष्मी जी की पैदाइश ही क्षीरसागर से हुई है तो कायदे साथ उन्हें भगवान विष्णु के साथ अपने ससुराल में होना चाहिए पर वे है अपने मायके में । क्षीर ( चंद्र ) , सागर ( जल तत्व ) , भगवान विष्णु (बुध ) लक्ष्मी ( शुक्र ),शेषनाग ( केतु ) क्या हम कह सकते हैं कि जल तत्व राशि में जब बुध ,चंद्र ,केतु और शुक्र का योग हो तो ऐसी कन्या विवाह के बाद ससुराल में नहीं रहेगी।पति के साथ ससुराल से अलग हो जाएगी।