RAMCHARITMANAS

रामचरितमानस द्वारा ज्योतिषशास्त्र को समझने का एक और प्रयास -
हनुमान जी के लिए लिखा है " वायोरग्नि " अर्थात् वायु का पुत्र अग्नि।
आगे लिखा है " प्राकाम्यसिद्धि " अर्थात् इस अग्नि का रूप कैसा ? उनके संकल्प के अनुसार ही अग्नि काम करती है।
संकल्प के अनुसार अर्थात् जिसे चाहें जला डालें और जिसे चाहें न जलाएँ।
" जरा नगरू निमिष एक माही। एक विभीषण कर ग्रह नाही ।"
निशाचरों समेत पूरी लंका को एक पल में जला डाला सिर्फ विभीषण का घर छोड़ दिया।
निशाचर ( राहु ) , सिंहिका का बेटा इसे सैंहिकेय भी कहते हैं।
हनुमान जी ( मंगल )
सोने की लंका ( सिंह राशि )
1 - क्या हम कह सकते हैं कि सिंह राशि में,मंगल,राहु की युति हो तो अग्नि भय ।
2- विभीषण ,शास्त्र का ज्ञाता ( बृहष्पति)
क्या हम कह सकते हैं कि सिंह राशि में मंगल और बृहष्पति का साथ हो तो बचाव हो या सिंह राशि में मंगल राहु के साथ पर बृहष्पति की दृष्टि हो तो बचाव हो ..

Comments

  1. Krishna-ji,

    Good logical deduction. But needs to be cross-checked with horoscopes.

    As usual, I am following your write-up. So far logical. However, you equating Indra with Sun is probably wrong. Indra indicates Indriya in one sense and an amalgamation of qualities common in many devata in another sense.

    regards

    Chakraborty

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  2. आपके विचारों का स्वागत। एक ही चीज़ के कई अलग अलग रूप हो सकते है। मैंने यहाँ इन्द्र के राजा रूप को लेकर उसे सूर्य के साथ जोड़ा है।
    Regards
    कृष्णा

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