ज्योतिष

ज्योतिष दो शब्दों से मिलकर बना है ..
ज्योति और ईश 
ज्योति .. प्रकाश .. अग्नि.. 
" अग्रे नयति इति अग्नि ".. हमेशा उर्घ्वमुखी होना , विकास की ओर अग्रसर होना 
प्रकाश .. हमेशा शोधरत रहना और प्रमाणित शोध के आधार पर जीवन और प्रकृति के रहस्यों को उजागर करना .. 
ईश ..एक अर्थ पौरुष भी 
अर्थात .. जीवन और प्रकृति के रहस्यों को अपने पुरुषार्थ के द्वारा ( पहले से चली आ रही मान्यताओं को तब तक नहीं मानना जबतक की उसे हम खुद के परिश्रम से , शोध से जांच न ले ) उजागर करने की ऐसी विधा जो जीवन में हमेशा हमें उर्घ्वगामी बनाये .प्रारब्ध और भविष्य के बीच का सेतु बने .यम, नियम आसन, प्राणायाम ,प्रत्याहार ,धरना, ध्यान ,समाधि के द्वारा अपने आप को साध के धर्म ,कर्म ,आय और व्यय करने की दृष्टि प्रदान करे . व्यय का एक अर्थ मुक्ति भी .व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की इस यात्रा को अपनी पद्धति से गति देने की इस प्रक्रिया को फिर चाहे कला कहें या विज्ञान..
नियति तो ध्रुव है ...

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