कोट चक्र ..एक नया आयाम

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 इस पोस्ट में मैंने रामचरितमानस और धनुराकार कोट चक्र की चर्चा की है .. रामचरितमानस के सुंदरकांड का वह छंद जो इसका सूत्रपात करता है वह है .. " कनक कोट विचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना ।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारू पुर बहु बिधि बना ।।
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथह्नि को गनै ।
 बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहि बनै ।।"
 यह हमें कोट चक्र का निर्माण कैसे किया जाए इसका सूत्र पकड़ाता है .. इसी में जब आगे बढ़ते हैं तब हमें इस कोट में प्रवेश का मार्ग दक्षिण दिशा से होगा यह संकेत मिलता है। प्रवेश का आधार चंद्र राशि नहीं बल्कि नक्षत्र होगा इसको यह कहकर समझाया ..
" मसक समान रूप कपि धरौं ..."
 दुर्ग में प्रवेश के बाद कितने प्रकार की सेनाओं से हमारा सामना होगा उसके बारे में संकेत देते हुए यह कहता है ..
"गज बाजि खच्चर निकर पदचर .."
अपने अपने रूप से मोहित करने का जिम्मा ..
"नर नाग सुर गंधर्व कन्या .."
 अनेक दांव पेंच से एक दूसरे को ललकारने का जिम्मा कौन कौन उठाते हैं ..कौन एक दूसरे को पराजित करने की और भक्षण करने की क्षमता रखते हैं .. धीरे धीरे जब सुंदरकांड में आगे बढ़ते हैं तब हमें सबसे महत्वपूर्ण सूत्र मिलता है जो कि इस चक्र को एक नया आयाम देता है ..वह यह कि दुर्ग का सबसे भीतरी हिस्सा अर्थात् स्तंभ खाली होने के बाबजूद दुर्ग भंग क्यों नही होता ..स्तंभ खाली है, मध्य और प्रकार में अशुभ ग्रह भी हैं फिर भी दुर्ग भंग क्यों नही होता ..
अलग अलग check point की चर्चा चलती है यहाँ ..
 रामचरितमानस भी ज्योतिष शास्त्र की तरह बहुआयामी ग्रंथ है ..

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